Pmcaresfund

Pmcaresfund का गठन और संरचना।

दिन 28 मार्च 2020  जब देश में मजदूरों की हालत धोबी के कुत्ते जैसी हो गई थी ना घर की ना घाट की,वह इधर उधर भटक रहे थे दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर थे तभी तभी देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी ने pmcaresfund (prime minister's citizen assistance and relief in emergency situation fund), का गठन किया। जिसके चेयरमैन हैं माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ट्रस्टीज हैं, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन। जब यह फंड बना था तो कहा यह गया था की, इस फंड में जमा हुई धनराशि का उपयोग CoVID-19 की रोकथाम एवं राहत बचाव के कार्यों के लिए किया जाएगा। कोरोना के खिलाफ चल रही मुहिम में प्रधानमंत्री जी ने मदद के लिए पीएम केयर्स फंड में दान करने की अपील की थी. प्रधानमंत्री मोदी की अपील के बाद कॉरपोरेट घरानों से लेकर सेलिब्रेटीज और आम जनता के बीच दान करने की होड़ मच गई।

पर हाल-फिलहाल में आ रही खबरों से मन में कुछ प्रश्न उठते है ।


Pmcaresfund


Pmcaresfund में विदेशी पैसा?

इस राहत फंड में विदेशी पैसे का भी स्वागत किया गया है, किन्तु अगर हम अतीत में जाएं तो हमे यह देखने को मिलता है कि विदेशी पैसों को इस प्रकार के राहत फंड में जगह नहीं मिली है, क्यूंकि यह घोटाले को जन्म दे सकता है।
तो आखिर फिर क्यूं इस बार मोदी सरकार ने विदेशी पैसे का स्वागत किया है ?

Pmcaresfund की आवश्यकता?

और अब प्रश्न आता है कि
" आवश्यकता ही क्या थी Prime Minister's Relief Fund के होते हुए एक नए फंड को लाने की?"
जवाब हैं, नहीं बिल्कुल आवश्यकता नहीं थी !

चलिए अब आते हैं उस मुद्दे पर जो सबसे ज्यादा चर्चा में है कि -
पीएम केयर्स फंड और पीएम राहत कोष में अंतर क्या है?

सवाल इसलिए उठ खड़े हुए कि नए बने प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात राहत कोष (पीएम-केयर्स) को लेकर अभी बहुत सी चीजें आधिकारिक तौर पर साफ नहीं की गईं हैं कि दोनों में क्या है अंतर-

बीजेपी आज ये अफवाह फैला रही है, कि PMRF के नियमानुसार कोंग्रेस अध्यक्ष सदैव ही उसका मेंबर होगा, जो कि 1985 तक सत्य भी था, किन्तु साल 1985 में, राजीव गांधी की सरकार ने इस नियम को ख़ारिज कर दिया था!
PMRF पूर्ण रूप से सरकारी यानी जनता का पैसा है, इस पर RTI भी लागू होता है।1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसका संचालन पूरी तरह पीएमओ के सुपुर्द कर दिया था,।
जबकि सरकार का कहना है कि पीएम केयर्स फंड का संचालन सिर्फ पीएमओ नहीं करेगा. इसमें प्रधानमंत्री भले अध्यक्षता करेंगे मगर गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री भी अहम भूमिका में रहेंगे. इसके अलावा विज्ञान, स्वास्थ्य, कानून, समाजसेवा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को भी सदस्य के तौर पर नामित किया जाएगा. धनराशि के खर्च के बारे में प्रधानमंत्री, मंत्री और विशेषज्ञों की कमेटी फैसला करेगी.
1985 से पहले कॉरपोरेट घरानों के प्रतिनिधियों को भी  pmnrf में जगह मिलती थी, मगर राजीव गांधी ने बाद में सिर्फ और सिर्फ पीएमओ के अधीन इसका संचालन कर दिया था.

जानकारों का मानना है कि इससे पता चलता है कि पीएम केयर्स का संचालन ज्यादा लोकतांत्रिक तरीके से होगा, क्योंकि इसमें प्रधानमंत्री ने मंत्रियों को भी शामिल किया है. खास बात है कि पीएम केयर्स में दस रुपये भी दान किया जा सकता है. हालांकि अभी पीएम केयर्स को लेकर कई बातें साफ नहीं हैं.

मसलन, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की ऑडिट का अधिकार सीएजी को है तो फिर एक सवाल और उठता है कि पीएम केयर्स फंड का ऑडिट कौन करेगा? कुछ चीजें दोनों फंड में कॉमन हैं. पीएमएनआरएफ या फिर पीएम केयर्स दोनों में दान करने पर 80 जी के तहत छूट मिलती है. जब नेहरू ने 1948 में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना की थी तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी फंड की प्रबंध समिति में होते थे.



तो फिर आखिर क्या और क्यों ही जरूरत थी इस नए PMcaresfund की ?

ऐसे ही कुछ प्रश्न बेंगलुरू में रहने वाले एक Law student और RTI activist हर्ष कुनकुरी के मन में भी आये तो उन्होंने एक RTI आवेदन किया जिसमे उन्होंने, "फंड से जुड़े दस्तावेज, इसे बनाने और चलाने के सरकारी आदेश और Notification Circular." की जानकारी देने की अपील की। पर PMO ने यह कहते हुए जवाब देने से इन्कार कर दिया की, PM CARES Fund एक पब्लिक ऑथोरिटी नहीं है, यह सरकारी पैसा नहीं है, अलबत्ता यह RTI के तहत कोई भी जानकारी देने के लिए बाध्य नही है।

अब मित्रों! प्रश्न यह उठता है की यदि यह एक सरकारी फंड नहीं है तो फिर, किसका पैसा है ?
कौन है इसका मालिक ?
हमारे प्यारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके प्रिय साथी अमित शाह जी से हमें यह पूछना पड़ेगा कि
जिनलोगो ने देश को Corona संकट से उभारने के लिए दिया गया पुण्यदान, वो देश का, देशवासियों का है ही नहीं ?

मित्रो, सामाजिक विज्ञान पढ़ कर हमे यह देखने को मिलता है, की जब कोई सरकार बहुत मजबूत होती है तो उसके घोटाले उस वक़्त नजर नहीं आते - बिल्कुल वैसे ही जैसे तेज़ आंधी में फूलों की भीनी खुशबू खो जाती है। हमे उस सरकार के घोटालों का अंदाजा उस वक़्त होता है, जब या तो सरकार कमजोर होती है, या सरकार से बाहर होती है।
तो क्या यह इस सदी का सबसे बड़ा घोटाला हो सकता है ?

कुछ लोगों का यह भी सवाल है कि लोगों का यह भी सवाल है कि लोगों का यह भी सवाल है कि

Pmcaresfund अगर पैसा सरकारी नहीं है, तो किसका?

प्रधानमंत्री जी ने आम जनता को सम्बोधित करते हुए यह कहा की, आप सभी इस फंड में डोनेट कर 'साकार' की सहायता करें कोरोना से लड़ने में।" क्यूं उन्होंने ये नहीं कहा कि हमें आने वाले चुनाव के लिए पैसा चाहिए, सो आप दीजिए, उनमें से थोड़ा पैसा हम कोरोणा संकट से लडने में जरूर लगाएंगे, पर बाकी का तो हमारा है। क्यूं नहीं कहा कि मेरे प्यारे देशवासियों, हम चुनाव जीत जाएं इसमें भी आपका ही भला है, तो हमे पैसे दीजिए !
क्यूं नहीं कहा ??
अब भगवान ही जाने सच्चाई क्या है?

आपको बता दें कि इस फंड को लेकर राज्यों और केंद्र के बीच में भी तकरार शुरू हो गई है।
बता दें कि यह मामला राज्यों और केंद्र के बीच फंस गया है। कुछ राज्य सरकार का कहना है कि जिस तरह पीएम केयर फंड में जमा धन राशि को सीएसआर माना जा रहा है । उसी तरह मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा राशि को भी सीएसआर माना जाए। लेकिन कॉरपोरेट मंत्रालय ने ऐसा करने से मना कर दिया है। जिसके बाद विवाद बढ़ गया और विपक्षी पार्टियां इसे कोर्ट ले गई।

आंकड़ों की माने तो अब तक PM CARES Fund में 10,000 करोड़ से भी अधिक धनराशि जमा हो चुकी है। ये सारी जमाराशि आम जनता का पैसा है और जनता का पूरा हक़ बनता है की उसे इस बात की जानकारी दी जाये की उनके दान किये गए धन का किस प्रकार उपयोग हो रहा है?

बरहाल अब अगर मैं अपने विचार बताऊं इस मुद्दे पर तो PM CARES Fund को भी RTI के दायरे में लाने की मांग करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में जो याचिका दायर की गयी है,मेरी नज़र में तो यह एक अच्छा कदम है मैं इस याचिका का पूरा समर्थन करती हूं। PMO को इस फंड की जानकारी जनता को अवश्य देनी चाहिए क्योंकि यह उनका अधिकार है, करोड़ो भारतीय नागरिकों ने एक अच्छे उद्देश्य के लिए अपनी मेहनत की कमाई इस फंड में दान की है। ऐसे में इस से जुड़ी जानकारी मांगने पर PMO से इस प्रकार की प्रतिक्रिया जनता के मन मे अनेक सवाल खड़े करता है, और एक पारदर्शिता जो होनी चाहिए सरकार एवं जनता के बीच ये रवैया उसके अनुसार भी सही नही है इस से भारत की Democracy पर भी सवाल उठता है की,"क्या अब भारत मे Democracy खतरे में है ?"

"क्या नागरिकों से उनके मूल अधिकार छीने जा रहे हैं?"

आप के विचार मुझसे अलग हो सकते हैं।


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1 टिप्पणी:

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