कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनको परिभाषित करना थोड़ा कठिन होता है फिर भी अनायास ही वह चर्चित हो ही जाते हैं।
अब इसी शब्द को देख लीजिए Anti-nationals वर्तमान में यह शब्द लोगों के ज़बान पर उसी तरह आ जाता है जैसे लोगों के थाली में दाल।यह अलग बात है कि लोगों को इसका अर्थ नहीं पता और अगर पता भी है तो इसका उपयोग वह अपना उल्लू सीधा करने के लिए करते हैं।
इस शब्द की प्रसिद्धि का अंदाजा आप इस बात से लगाइए कि एक दिन मेरे अंकल का एक 13-14 साल का लड़का टीवी पर जे.एन.यू. प्रोटेस्ट को देख रहा था और फिर मुझसे बोलने लगा:-" भईया ये सब Anti-nationals हैं।
तो मैंने उससे पूछा कि ये बताओ जानते हो किसे Anti-nationals कहते हैं। तो वो धीरे से बोला भईया...वो पापा कह रहे थे...तो मैंने भी कह दिया।
आप इस घटना पर हंस भी सकते हैं!
क्योंकि हम लोग तो किसी भी बात पर हंस देते हैं?
इतिहास में ऐसा बहुत कम होता है, जो बिल्कुल नया होता है और कम से कम ‘एंटी-नेशनल’ शब्द तो ऐसा कतई नहीं है। जब भी ऐसे शब्द लौट कर आते हैं, तब हमारा दायित्व है कि हम उन्हें उनके पुराने इस्तेमाल की रोशनी में समझने की कोशिश करें ।
राष्ट्र-विरोधी, भारत विरोधी, आपातकाल के निजाम की शब्दावली का हिस्सा थे, जिनका इस्तेमाल लोकतंत्र की रक्षा करनेवाले कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ किया जाता था।
Anti-national शब्द का इस्तेमाल आपातकाल के दौरान भी बहुत चर्चा में था।तब की सत्ताधारी सरकार ने भी इस शब्द की मनमानी व्याख्या की और इसका उपयोग बहुत गलत तरीके से अपने विरोधियों व आपातकाल के आलोचकों को देश का दुश्मन बताते हुए लोगों को भ्रमित करने के लिए किया।आपातकाल के दौर में इस शब्द का इस्तेमाल सरकार का विरोध करनेवाले कार्यकर्ताओं, ख़ासतौर पर विदेशी चंदा पानेवालों, बुद्धिजीवियों और नई दिल्ली में सत्ता के दुरुपयोग का पर्दाफ़ाश करने वाले प्रेस पर निशाना साधने के लिए किया जाता था। ठीक वैसे ही आज कोई और सत्ता में है और अपने आलोचकों को देश का दुश्मन बताते हुए इसी भाषा का इस्तेमाल कर रहा है।
लेकिन इन दिनों इस शब्द के मायने बदल चुके हैं और इसके उपयोग का तरीका भी।
अब आप ये सोचेंगे कैसे?
अरे चिंता मत करिए बस आप अपना टीवी खोलिए और कोई भी मन पसंद न्यूज चैनल लगा लीजिए आपको हर दिन भाजपा का एक प्रवक्ता या किसी व्यावसायिक चैनल के एंकर Anti-nationals की पहचान कराते हुए मिल ही जाएंगे। लेकिन दु:ख की बात यह है कि वे भी ‘राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों’ की असली हद और इतिहास के बारे में आपको कुछ नहीं बताते हैं- जबकि यह शब्द इस देश में एक बार पहले भी चर्चा में रह चुका है।
आप इस शब्द की खूबसूरती देखिए की इसने किसी को भी बख्शा नहीं है ।जो कभी खुद भी
एंटी- नेशनल का तमगा लिए थे,आज वही दूसरों को एंटी-नेशनल की संज्ञा दे रहे हैं।
यह एक अलग इतिहास है, जिसके बारे में हमें ना ही पढ़ाया जाता है और ना ही बताया जाता है।यह धमकियों और आक्षेपों का इतिहास है जो हमें एक सवाल की ओर लेकर जाता है,कि ‘एंटी-नेशनल’ होने का आरोप हमें आरोप लगाए जाए जानेवाले के बारे में ज्यादा बताता है या उनके बारे में बताता है, जो यह आरोप लगाते हैं?
और आप तो इस बात से भलिभांति परिचित होंगे कि सुब्रमण्यम स्वामी और अरुंधति रॉय में क्या समानता है? ज्यादा नहीं,सिवाय उन सरकारों के जिन्होंने उन पर ‘एंटी-नेशनल’ होने का आरोप लगाया और यह एक सोचने लायक बात है।
बाकी आप किसी को भी कुछ भी कह सकते हैं?
कहते ही हैं-जुमलेबाजी को राष्ट्रभक्ति और आवाज उठाने वाले को एंटी-नेशनल।
Anti-national
Reviewed by Democrat-KALAM -THE new AGE of CREAtivity
on
जुलाई 02, 2020
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